Monday, March 28, 2011

भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाला सेमी-फ़ाइनल मुकाबले का परिणाम आ चुका है....

जब छोटा था, तब रेडियो की कमेंट्री सुना करता था. घर में ट्रांजिस्टर तो था लेकिन वोह बाबूजी को खबरें सुनने के लिए चाहिए होता था और उस ज़माने में औलादों की इतनी औकात नहीं होती थी कि वालिद साहब के काम में आने वाली छोटी-बड़ी चीज़ों को, उनकी गैर-मौज़ूदगी में भी हाथ लगाने कि हिमाक़त कर सके! उनकी किसी चीज को बिला वजह छेड़ने का ख़याल ही पसीने छुड़वा देता था. यहाँ आज के दौर का बयान बेमानी होगा क्योंकि उन हालातों से तो हम-आप रोजाना ही रु-बरु होते हैं. माँ-बाप को अगर टेलिविज़न पर अपना कोई पसंदीदा प्रोग्राम देखना हो तो औलादों या औलाद कि औलाद से रिक्वेस्ट करनी पड़ती है.......
ख़ैर जाने दीजिये, हम ज़िक्र कर रहे थे क्रिकेट-कमेंट्री का- तो जनाब उस दौर में रेडियो पर कमेंट्री सुनना भी बड़े फख्र की बात हुआ करती थी. जब थोड़े बड़े हुए तो हिंदुस्तान में संचार-क्रांति का आग़ाज़ हो गया. रेडियो-ट्रांजिस्टर की जगह टेलीविजन लेने लगे. वो दौर भी कम से कम आज के दौर से बेहतर था. पूरे मौहल्ले में कुल दो या तीन घरों में ही टीवी सेट हुआ करते थे और पूरा मौहल्ला उसका लुत्फ़ लिया करता था. जिस घर में टीवी सेट होता, प्राय: उस घर के मेम्बरान खुद ज़मीन पर बैठ कर प्रोग्राम देखते और मौहल्ले के बड़े-बुजुर्गों को अपने घर के पलंग-सोफों आदि पर बिठा कर इज्ज़त बख्शते थे. मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ कि मेरी बातों में रत्ती भर भी मिलावट नहीं है. मौहल्ले के बुज़ुर्ग भी उस ज़माने में किसी पडौसी के यहाँ नियमित रूप से जा कर टीवी देखना कमोबेश अपना हक़ ही मानते थे. आज अगर घर का कोई बच्चा, पडोसी के हम-उम्र बच्चे के घर रोज़ाना खेलने जाने लगता है तो सबसे पहले उस बच्चे की माँ  ही उसे टोक देती है- 'रोज़-रोज़ किसी के घर नहीं जाते!'
लो जनाब, हम फिर अपने मुद्दे से भटक गए. बात चल रही थी क्रिकेट-कमेंट्री की. टीवी के आजाने के बाद हमारा क्रिकेट प्रेम भी अपने शबाब पर आ गया. साठ-साठ ओवर के वन-डे मुकाबले में सुनील गावस्कर को शुरू से अंत तक बल्लेबाज़ी करते देखना और पौने दो सौ गेंदें खेल कर, कुल तीस-पैंतीस रन बना कर नाट-आउट लौटते हुए देखने की हमें आदत होने लगी थी. उस ज़माने में अकेला दूरदर्शन ही टीवी का मालिक था. मालिक से हमारा मतलब ये है कि टीवी पर सिवाय दूर-दर्शन के कुछ भी नहीं प्रसारित होता था. कभी-कभी छत की दीवारों पे चढ़ कर, एंटीने की दिशाएं बदल बदल कर पाकिस्तानी चैनल लगाने का असफल प्रयास भी किया करते थे. यहाँ मैं आपको यह भी बता दूँ कि दूर- दर्शन पर सभी क्रिकेट मुकाबले लाइव नहीं दिखाए जाते थे क्योंकि दूर-दर्शन की अपनी सीमाएं थीं. ख़ास तौर पर वेस्ट-इंडीज में, वेस्ट-इंडीज के साथ होने वाले मुकाबलों का सीधा-प्रसारण नहीं हुआ करता था. शायद वक़्त का फ़र्क ही इसकी मूल वजह हुआ करता होगा....लेकिन क्रिकेट के प्रति हमारा लगाव जुनून की हद तक बढ़ चुका था. उन दिनों में अक्सर दूर-दर्शन द्वारा ऐसे मुकाबलों का प्रसारण मुकाबला ख़त्म होने के तुरंत बाद शुरू होता था और पूरा मुकाबला जस का तस दिखाया जाता था. यहाँ ये भी बता दूँ, उन दिनों टीवी पर विज्ञापनों का भी इतना प्रकोप नहीं हुआ करता था. हमारे जुनून की इन्तेहा ये थी कि हम मुकाबले का नतीजा जानने की कोशिश किये बगैर पूरा प्रसारण ऐसे देखते थे मानो सीधा प्रसारण ही हो रहा हो. इस दौरान अगर कोई हमें मुकाबले का नतीजा बताने की कोशिश भी करता तो हम उसे 'कोशिश' फिल्म का संजीव कुमार बनाने से भी गुरेज़ नहीं करते थे. हकीकत मानिए, ये हमारे जुनून की इन्तेहा थी.
वक़्त बदला, वक़्त के साथ-साथ हालात भी बदलते गए. टीवी पर पहले जहाँ सिवाय दूर-दर्शन के कुछ दिखाई ही नहीं देता था, वहीँ अब टीवी में दूर-दर्शन को ढूंढना भी एक चेलैन्ज से कम नहीं है. वक़्त के साथ बदलाव क्रिकेट में भी आया. कई पुराने नियम टूटे और नए नियम बनाए गए. परिवर्तन प्रकृति का नियम है, ये हमने सुना था मगर परिवर्तन कब कहाँ और कितना होगा, इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था....., है..... और रहेगा..... बहरहाल, इन तथाकथित परिवर्तनों के बीच हमारा क्रिकेट प्रेम महज प्रेम से जुनून में तब्दील हो कर ही रह गया- उससे ज्यादा नहीं बदल पाया.
आज जब पुरानी बातों को याद करने बैठा तो समझ नहीं आया कि क्या भूलूं, क्या याद करूँ.....
अचानानक मोबाइल की घंटी ने हमारी तन्द्रा भंग की और हमें वर्तमान में लौटने पर विवश कर दिया. देखा तो पता चला, पुराने मित्र पालीवाल का फोन था. फोन रिसीव करते ही पालीवाल बोला, "भारत- पाकिस्तान वाले सेमी-फ़ाइनल में भारत पहले बैटिंग करेगा और पाकिस्तान ये मुकाबला पांच से दस रनों के अंतर से हार जाएगा, मुकाबला रोचक होगा लेकिन नतीजा पहले से तय है......."
पालीवाल इसके आगे भी बहुत कुछ बोल रहा था मगर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था......