Monday, April 11, 2011

अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं

 अन्ना हजारे के अनशन के दौरान हमारे पड़ोसी गुप्ताजी ने भी बड़ी मुस्तैदी दिखाई थी. मोहल्ले के बच्चों को इकठ्ठा करके एक मिनी जलूस निकाल कर "अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं.." के नारे लगवाए थे और पूरे मोहल्ले में अपने-आप को तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का लोकल पैरोकार बना लिया था. अन्ना हजारे के अनशन को मिली सफलता ने हमारे दिल-ओ-दिमाग पे कुछ ऐसा असर किया कि क्या बताएं. हमें लगने लगा कि आज़ादी के सही मायने तो अब समझ आने लगे हैं. अब तक जो देखा-भोग था, अचानक आज़ादी से पहले की बात लगने लगा. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की एक छोटी अलख हमारे भीतर भी सुलगने लगी.
हमने निश्चय किया कि हम भी अपने लेवल पर भ्रष्टाचार मिटाने का कोई सार्थक प्रयास करेंगे. हमारे अन्दर का क्रन्तिकारी जागने लगा और सरफरोशी की तमन्ना अंगडाई लेने लगी. अब बड़ा सवाल ये था कि भ्रष्टाचार को ढूँढने की मुहिम की शुरुआत कहाँ से हो? अचानक हमें अपने मोहल्ले के लब्ध-प्रतिष्ठ नेता गुप्ताजी की याद आई, सोचा- चलो उन्हीं से पूछा जाये कि ये भष्टाचार कहाँ मिलेगा और उसे कैसे ख़त्म करना है....
अपने ख्यालों में खोये-खोये हम गुप्ताजी के घर के आगे पहुँच गए. पता चला, गुप्ताजी के यहाँ कंस्ट्रक्शन-वर्क चल रहा है और बड़े जोर-शोर से चल रहा है. हम मज़दूरों से बचते-बचाते घर के भीतर दाखिल हुए तो कुछ अजीब-सा महसूस हुआ मगर ये समझ नहीं आया कि जो 'अजीब-सा' महसूस हुआ, वो क्या है...
ख़ैर जनाब, घर के बरामदे में गुप्ताजी चारपाई पर अधनंगे लेटे हुए पान चबा रहे थे. हमारे अभिवादन का जवाब दिए बगैर बोले,"आज तू कैसे रास्ता भूल गया?"
हमें उनका इस कदर बे-तक़ल्लुफ़ होना कुछ नागवार गुज़रा मगर उन्होंने इस बात पे गौर फरमाने की कतई कोशिश नहीं की और नौकर को चाय लाने का इशारा करते हुए हमें बैठने का इशारा किया. हम अनमने-से बैठते हुए कंस्ट्रक्शन-वर्क को देखने लगे. गुप्ताजी ने हमारी नज़रों को पढ़ लिया और बोले,"आगे जगह खाली पड़ी थी इसलिए तीन दुकानें बनवा रहा हूँ, जगह का उपयोग भी हो जाएगा और आमदनी भी होने लगेगी..."
अचानक हमें लगा, गुप्ताजी के घर में घुसते वक़्त हमें जो 'अजीब-सा' अहसास हुआ था वो हमारी समझ में आगया है, दरअसल गुप्ताजी का तथाकथित कंस्ट्रक्शन-वर्क उनके घर के आगे की सरकारी ज़मीन पर हो रहा था. अब हमें ये समझ नहीं आया कि गुप्ताजी से क्या कहें और कैसे कहें....
"चाय लो!" गुप्ताजी ने हमें मदहोशी से होश में लाते हुए कहा.
हमने अपने भीतर के अन्ना को सहेजते हुए गुप्ताजी से पूछ ही लिया,"आपका कंस्ट्रक्शन-वर्क, सरकारी ज़मीन पर तो नहीं हो रहा, मुझे तो ऐसा लगता है आप अपनी ज़मीन से तकरीबन दस फुट आगे आ गए हैं...."
"आपने क्या सरकारी ज़मीन की पैमाइश का ठेका ले रखा है?" गुप्ताजी ने हमारी बात को बड़ी बे-दर्दी से काटते हुए कहा,"ज़मीन सरकारी है तो क्या हुआ, है तो हमारे ही घर के आगे की! हम कौनसा आपके घर के आगे कंस्ट्रक्शन करवा रहे हैं? अपने काम से काम रखो, दूसरों के काम में दखल मत दो, खामखाँ परेशानी में पड़ जाओगे...."
गुप्ताजी और भी बहुत कुछ बोल रहे थे मगर हमें कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. हम चुपचाप बिना चाय पिए अपने घर की तरफ चल दिए...
गली के नुक्कड़ पे कुछ बच्चे नारे लगाते हुए दौड़ रहे थे,"अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं...,अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं...!!"