Sunday, February 11, 2018

हमारे पड़ोसी श्री छद्मी लाल जी, एक स्थापित साहित्यकार हैं। कविता, कहानी, व्यंग्य से ले कर नाटक, उपन्यास तक उनका पूरा दखल है। कुल मिला कर साहित्य की कोई भी विधा, उनसे अछूती और अछूटी नहीं है। पूरा शहर उनके कलाम से त्रस्त है।
श्री छद्मी लाल जी, स्थापित कब, कहाँ और कैसे हुए, ये बात पूरा मोहल्ला अब तक नहीं जान पाया है। हमने जब होश संभाला, तब तक स्वनाम धन्य, श्री छद्मी लाल जी, पूरे शहर में सुने-पढ़े और जाने, जाने लगे थे. साहित्यिक कार्यक्रमों में उनकी बुकिंग, बकायदा टेंट हॉउस के सामान के साथ ही हुआ करती थी।
पिछले कुछ अरसे से उन्होंने अपना तखल्लुस 'ज़ालिम' लिखना शुरू कर दिया है। हमने उनसे इस परिवर्तन का कारण पूछा तो बोले,"वो क्या है ना...कि जिस तरह असद साहब, 'ग़ालिब' का तख़ल्लुस लगा कर अमर हो गये हैं, हम भी उसी तरह 'ज़ालिम' के नाम से अमर होना चाहते हैं...!!"
हमने ख़ामोशी से आगे बढ़ते-बढ़ते, मन ही मन सोचा, 'ज़ालिम' तख़ल्लुस लगाने की क्या जरुरत थी, सारा शहर आपको पहले से ही 'ज़ालिम' मानता है!
~गौतम केवलिया, बीकानेर।
#HariBol

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